माता कुन्ती को मिला 1 श्रॉप जिसका असर आज भी महिलाओ पर पड़ता है

परिचय: राधे राधे भक्तो आप सभी ने महाभारत के बारे में तो सुना ही होगा जिसमे श्री कृष्ण ने गीता का ज्ञान दिया है आज हम आपको महाभारत से जुड़ी एक रोचक कथा बता रहे है जिसका प्रभाव आज की महिलाओं पे भी देखा जाता है आप ने एक कहावत तो सुनी ही होंगी की महिलाओं के पेट में बात नही पचती इसका सीधा संबंध महाभारत के एक श्राप से है जो की माता कुंती को दिया गया था चलिए तो जानते है क्या थी इस श्राप की पूरी सच्चाई और क्यों दिया गया था माता कुंती को ऐसा श्राप और किसने दिया था।

माता कुंती को मिला वरदान ही बना श्राप की वजह

माता कुन्ती को मिला 1 श्रॉप जिसका असर आज भी महिलाओ पर पड़ता है
माता कुंती को मिला वरदान ही बना श्राप की वजह

विवाह से पूर्व माता कुंती महर्षि दुर्वासा के आश्रम में उनकी सेवा किया करती थी जिससे प्रसन्न हो के महर्षि दुर्वासा ने माता कुंती को एक वरदान दिया था जिसमें माता कुंती किसी भी देवता का आवाहन कर सकती थी और उन देवताओं से संतान प्राप्त कर सकती थी। 

कुवारेपन में माता कुंती से हुई बड़ी भूल

माता कुन्ती को मिला 1 श्रॉप जिसका असर आज भी महिलाओ पर पड़ता है
कुवारेपन में माता कुंती से हुई बड़ी भूल

जब माता कुंती को वरदान मिला तो माता कुंती इसका प्रभाव नही जानती थी और कुवरेपन में ही भूल वर्स इसका उपयोग कर बैठी इस मंत्र प्रसाद का प्रयोग कर माता ने भगवान सूर्य नारायण को प्रसन्न किया जिसके परिणाम स्वरूप माता कुंती को पुत्र की प्राप्ति हुई उस पुत्र का नाम कर्ण था। परंतु माता कुंती से समाज के भय में आ के अपने पुत्र कर्ण का त्याग कर दिया और उसके नदी में बहा दिया और भगवान सूर्य नारायण से विनती की कि इस बालक की रखना करे जिससे भगवान सूर्य नारायण ने कर्ण को दिव्य कवच और कुंडल दिए जो की किसी भी शास्त्र को अपने अंदर समा लेने की सकती रखते थे। और माता कुंती ने कर्ण को नदी में बहा दिया। वही नदी के तट पे कर्ण अधिरथ को प्राप्त हुआ जो की अधिरत पितामाह भीष्म के रथ के सारथी थे।

5 पांडवो का का जन्म

कुछ वर्षो पश्चात माता कुंती का विवाह हस्तिनापुर के महाराज पांडू से हो गया माता कुंती महाराज पांडू की अपने बीते कल की बात बताना चाहती थी परंतु समाज में निंदा के भय से वे नहीं बता पाई कुछ समय के बाद महाराज पांडू वन में मृगया (शिकार) कर रहे थे। तभी उनसे भूल से एक ऋषि की हत्या हो गई जो की वही एक मृग (हिरन) के रूप में लीला कर रहे थे और ऋषि ने श्राप दिया की जिस अवस्था में उनकी मृत्यु हो रही है उसी प्रकार जब भी पाण्डु अपनी पत्नियों के साथ सहवासरत होंगे तो उनकी भी मृत्यु हो जाएगी। जिसके कारण अब वो पुत्र की प्राप्ति नही कर सकते थे इस श्राप ने महाराज पांडू के मन को पीड़ा से भर दिया जिसके कारण महाराज पांडू ने राज्य का त्याग कर दिया और वन में रहने का निश्चय किया और पांडू के बड़े भाई धृतराष्ट्र को कार्यकारी राजा ( राज्य की देखभाल करने वाला) बनाया गया। कुछ वर्ष बाद जब पांडू के मन में पुत्र का विचार आया तो वे चिंतित हो गए। पांडू को चिंता में देख के माता कुंती ने उन्हें अपने वरदान के बारे में बताया जिससे वो बेहत प्रसन्न हो उठे और पांडू ने कहा की तुम इसे अलग अलग देवताओं से प्राथना करो की वे हमें पुत्र दे जो की हमारे राज्य में धर्म युक्त सासन करे। उसके बाद माता कुंती ने धर्म राज का आह्वान कर युधिष्ठिर और पवन देव से भीम तथा इंद्र देव से अर्जुन जैसे पुत्र को मांगा अब माता के मन में ये बात आई की मुझे तो तीन संतान की प्राप्ति हो गई है परंतु माधुरी (महाराज पांडू की दूसरी पत्नी) की अब तक कोई संतान नहीं है तो माता कुंती ने वह मंत्र प्रसाद माधुरी को दिया जिसके फल स्वरूप माधुरी ने अविनि कुमारा को प्रसन्न कर नकुल और सहदेव को प्राप्त किया।

कर्ण क्यू बन गए थे पाण्डव के दुश्मन

कर्ण भगवान सूर्य नारायण का दिया हुआ मंत्र प्रसाद थे इसलिए ही उनमें समर्थ की कोई कमी नही थी वे बचान से ही धनुर्विद्या जानते थे लेकिन उनमें विश्व का सर्वरेस्ट धनुर्धारी बनने की इच्छा थी इसलिए वो जहा वहा जाके धरूरविध्य शिखना चाहते थे लेकिन वो एक सूत के नाम से जाने जाते थे इसलिए उन्हें शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार नही इसलिए उन्होंने झूठ का सहारा लिया और अपने आप को ब्राह्मण बता के भगवान परशुराम से विद्या प्राप्त की परंतु जब शिक्षण पूर्ण हुआ तो भगवान परुराम को ज्ञान हुआ के कर्ण ब्राह्मण भी है बल्कि एक सूत पुत्र है इसलिए भगवान ने कर्ण को श्राप दिया की जब भी तुम्हारी शिक्षा की सबसे बड़ी परीक्षा होंगी तुम अपनी सारी विद्या खो दोंगे। इसके बाद कर्ण विंग हस्तिनापुर आते है और उसी समय सभी जरकुमारो के बीच प्रियोगा हो रही होती है जिसमे अर्जुन अपनी धरूरविधा का प्रदर्शन करते है और गुरु द्रोणाचार प्रसन्न होके अर्जुन को विश्व का सर्वस्रेत दानुधार की उपाधि दे देते है जिसको देख कर्ण अर्जुन को आह्वान देते है परंतु कर्ण सूत पुत्र होने के कारण सब उसका बहिस्कार करते है और कर्ण को चले जाने को कहते है उसी समय दुर्योधन अपना फायदा देखते हुए कर्ण को अंग का राज्य दे देते है ताकि कर्ण अर्जुन से युद्ध कर पाए और दोनो के बीच युद्ध होता है परंतु सूर्यास्त होने के कारण कोई परिणाम नहीं मिल पाता तभी से कर्ण की मित्रता दुर्योधन से हो जाती है और पाण्डवओ से सत्रुता हो जाती है

क्यों मिला था माता कुंती को श्राप

पाण्डव और कौरव के बीच में हस्तिनापुर राज्य को लेके विवाद चल रहा था जिसके रहते राज्य का विभाजन कर दिया गया था परंतु जब पांडव ने अपना राज्य स्वतंत्र कर चक्रवर्ती सम्राट बन गए तो दुर्योधन को ईर्ष्या होने लगी और दुर्योधन ने मामा सकुनी के साथ मिलके सद्यंत्र रचा और द्युथ सभा में छल करके पांडव का राज्य जीत लिया और इसके परिणाम स्वरूप पाण्डव को 12 का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञात वास भोगना पड़ता इसके बाद उनको उनकी संपत्ति लौटा दी जाती परंतु दुस्योधन अब भी छल करना है और उनकी संपत्ति नहीं लौटता इसकी कारण से महाभारत का धर्म युद्ध होता है जिसमे श्री कृष्ण पाण्डव के साथ होते है क्युकी पांडव धर्म के साथ थे। जब पितामह भीष्म और गुरु द्रोणाचार की की मृत्यु के पश्चात कर्ण रणभूमि में प्रवेश करते हैं और युद्ध के 17वे दिन अर्जुन के साथ युद्ध करते हुए उनकी मृत्यु हो जाती है जिसकी खबर सुनकर माता कुंती रणभूमि में प्रवेश करती है और करण को ऐसी हालत में रोने लगती है इस समय पांडव भी वहां उपस्थित होते हैं अपनी माता को रोते देखा अपने माता से प्रश्न करते हैं कि यह हमारा शत्रु है आप क्यों रो रहे हैं इसके लिए तो फिर माता कौन थी उनको अपने पुत्र की सच्चाई बताती है कि यह तुम्हारा बड़ा भाई है यह सुनकर युधिष्ठिर को क्रोध आ जाता है की माता तुमने हमसे यह बात क्यों छुपाई अगर आप हमें पहले ही बता देते तो हम इसका कोई और उपाय निकाल लेते हमारे ही हाथों हमारे बड़े भाई की मृत्यु हो गई आपने बहुत गलत काम किया था यह करके अपनी माता को श्राप दे देते हैं कि आज के बाद किसी भी महिला के पेट में मन में कोई भी बात छुपी नहीं रहेंगे तभी से देखा जाता है की कोई भी महिला अपने पास कोई भी बात को रख नहीं सकती वह आपस में किसी न किसी को बात बता ही देती है

निष्कर्ष

राधे राधे भक्तो तो  हमे इस कथा से यह सिख मिलती है की परिस्थिति चाहे कैसी भी हो हमे सत्य नहीं छुपाना चाहिए समय रहते उसे कह देना ही उचित है अन्यथा भविस्य में उसके परिणाम अधिक कस्त्दाय बन जाते है 

तो भक्तो आप लोगों को यह कथा कैसी लगी हमें कमेंट करके जरूर बताएं और हम आशा करते हैं कि यह कथा से आपको बहुत कुछ सीखने को मिला होगा

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